हौसलों की जीत: हिसार की एसिड अटैक सर्वाइवर ने CBSE 12वीं में हासिल किए 95.6% अंक, चंडीगढ़ ब्लाइंड स्कूल में रही टॉपर

हौसलों की जीत: हिसार की एसिड अटैक सर्वाइवर ने CBSE 12वीं में हासिल किए 95.6% अंक, चंडीगढ़ ब्लाइंड स्कूल में रही टॉपर

रिपोर्टर: [नाम]
स्थान: चंडीगढ़/हिसार
प्रकाशन तिथि: 14 मई 2025

प्रस्तावना:

जब हालात जीवन के हर दरवाज़े बंद कर देते हैं, तब कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मबल से नई राहें बना लेते हैं। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है हरियाणा के हिसार जिले की acid attack survivor छात्रा की, जिसने न केवल अपनी तकलीफों पर विजय पाई, बल्कि Central Board of Secondary Education (CBSE) की 12वीं कक्षा में 95.6% अंक प्राप्त कर समाज के सामने एक मिसाल कायम की। यह छात्रा चंडीगढ़ के एक ब्लाइंड स्कूल की छात्रा है और इस साल की टॉपर रही है।

जीवन की सबसे कठिन सुबह:

इस बहादुर लड़की की ज़िंदगी तब बदल गई जब वह महज 6 साल की थी। किसी पारिवारिक विवाद के चलते उस पर एसिड फेंका गया, जिससे उसका चेहरा और आंखें गंभीर रूप से झुलस गईं। इस हमले ने उसकी आंखों की रोशनी छीन ली, चेहरा पहचान से परे हो गया और जीवन जैसे थम सा गया। परंतु उसके इरादे कभी नहीं डगमगाए। उसकी मां ने कभी भी हार नहीं मानी। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी को शिक्षित करने का निश्चय किया। इलाज के दौरान देश के कई बड़े अस्पतालों में चक्कर काटे गए, सैकड़ों ऑपरेशन्स हुए, लेकिन आत्मा की चमक कम न हुई।

शिक्षा की ओर पहला कदम:

इस बच्ची को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए बनाए गए चंडीगढ़ के ब्लाइंड स्कूल में दाखिला दिलवाया गया। यहां उसे ब्रेल लिपि में पढ़ना-लिखना सिखाया गया। शारीरिक चुनौतियों के बावजूद इस छात्रा ने पढ़ाई को अपना लक्ष्य बना लिया। जब उसके हमउम्र बच्चे खेलकूद और मनोरंजन में समय बर्बाद कर रहे थे, तब यह लड़की लाइब्रेरी और ब्रेल नोट्स में डूबी रहती थी।

CBSE 12वीं परीक्षा में कमाल का प्रदर्शन:

इस साल जब CBSE ने 12वीं के नतीजे घोषित किए, तो चंडीगढ़ ब्लाइंड स्कूल के स्टाफ और छात्रा के घर में जश्न का माहौल था। 95.6% अंक पाकर उसने अपने स्कूल में टॉप किया। यह न केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि थी, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी था कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, इच्छाशक्ति के सामने सब झुक जाते हैं।

उनके विषय और पढ़ाई की दिनचर्या:

इस छात्रा ने आर्ट्स स्ट्रीम से पढ़ाई की। हिंदी, इंग्लिश, पॉलिटिकल साइंस, हिस्ट्री और सोशल वर्क जैसे विषयों में उसने असाधारण अंक प्राप्त किए। वह प्रतिदिन ब्रेल किताबों से 6 से 8 घंटे पढ़ाई करती थी। स्कूल की शिक्षिकाओं और सहपाठियों ने भी भरपूर सहयोग दिया।

ऑनलाइन संसाधनों के ज़रिए भी उसने अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाया। टेक्नोलॉजी को उसने एक वरदान की तरह अपनाया – ब्रेल डिस्प्ले, स्क्रीन रीडर सॉफ़्टवेयर, और स्पीच-टू-टेक्स्ट टूल्स से वह अपनी तैयारी करती रही।

मां की भूमिका और संघर्ष:

उसकी मां की भूमिका इस पूरे संघर्ष में सबसे अहम रही। अपनी बेटी के हर कदम पर वह उसके साथ रहीं। जब स्कूल जाने के लिए साधन नहीं मिला, तो मां खुद उसे स्कूल छोड़ने जाती थीं। आर्थिक रूप से सक्षम न होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा के लिए हर मुमकिन कोशिश की।

“मेरी बेटी को दुनिया से नहीं, किताबों से प्यार है,” मां ने मीडिया से बातचीत में भावुक होते हुए कहा।

समाज की भूमिका और चुनौतियाँ:

इस बच्ची को बचपन में कई बार तिरस्कार और भेदभाव का सामना करना पड़ा। लोग उसके चेहरे को देखकर सवाल करते, ताने देते। स्कूल के शुरुआती दिनों में बच्चे उसके पास बैठने से कतराते थे। लेकिन आज वही समाज उसकी सफलता पर तालियाँ बजा रहा है। इस घटना ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या हम एक समावेशी समाज में रहते हैं? जहां विकलांगता या शारीरिक दुर्बलता को भी एक मानवीय पहलू समझा जाए?

सरकारी सहायता और आगे की योजनाएं:

अब इस छात्रा को कई सामाजिक संगठनों और सरकारी योजनाओं से स्कॉलरशिप मिल रही है। चंडीगढ़ प्रशासन और CBSE ने उसकी उपलब्धियों की सराहना की है। राज्य सरकार ने उसे विशेष सम्मान देने की घोषणा की है। वह अब दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करना चाहती है। उसका सपना है कि वह एक सामाजिक कार्यकर्ता बने और एसिड अटैक से पीड़ित अन्य महिलाओं और लड़कियों के लिए काम करे।

राष्ट्रीय और सोशल मीडिया में चर्चा:

इस साहसी छात्रा की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी है। ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर हजारों लोगों ने उसकी मेहनत को सराहा। कई हस्तियों और राजनेताओं ने ट्वीट कर उसे बधाई दी है। एक्ट्रेस और सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी अग्रवाल ने भी इंस्टाग्राम स्टोरी के माध्यम से इस छात्रा को प्रेरणा बताया।

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की बधाई:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस छात्रा को ट्वीट कर बधाई दी:
“हिसार की यह बेटी पूरे भारतवर्ष की प्रेरणा है। उसकी लगन और साहस को सलाम। भारत की बेटियाँ आज हर क्षेत्र में इतिहास रच रही हैं।” हरियाणा के मुख्यमंत्री ने छात्रा को ₹5 लाख की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की और कहा कि राज्य सरकार उसकी उच्च शिक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी उठाएगी।

शिक्षकों की प्रतिक्रिया:

ब्लाइंड स्कूल की शिक्षिका सविता शर्मा ने बताया, “वह शुरू से ही एक अलग किस्म की छात्रा थी। उसके सवाल गहरे होते थे, और उसका समर्पण देखने लायक था। उसने कभी अपनी दृष्टिहीनता को कमजोरी नहीं बनने दिया।”

शिक्षा का असली उद्देश्य:

यह कहानी हमें बताती है कि शिक्षा केवल अंक लाने या नौकरी पाने का जरिया नहीं है, बल्कि यह आत्मबल, आत्मनिर्भरता और आत्म-सम्मान का आधार भी है। यह छात्रा न केवल पढ़ी, बल्कि पढ़ाई को जीया।

एक प्रेरणा हर भारतीय के लिए:

उसकी कहानी हर उस लड़की के लिए प्रेरणा है जो किसी भी वजह से शिक्षा से वंचित है। यह उन माता-पिता के लिए भी एक संदेश है जो बेटियों को बोझ समझते हैं। अगर सही समर्थन और दिशा मिले तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता।

भावुक पल:

जब नतीजे आए तो छात्रा की आंखों में आँसू थे, लेकिन यह आँसू दर्द के नहीं बल्कि जीत के थे। उसने ब्रेल की सहायता से अपनी अंक तालिका पढ़ी, और मां के गले लग कर रो पड़ी।

“मैंने खुद से वादा किया था कि एक दिन लोग मुझे मेरे नाम से पहचानेंगे, मेरे चेहरे से नहीं,” उसने कहा।

उपसंहार:

आज जब हम अक्सर निराशा, नकारात्मकता और असमानताओं की चर्चा करते हैं, तब इस लड़की की कहानी एक रौशनी की किरण की तरह है। यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर जज़्बा हो, तो परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, इंसान अपनी दुनिया खुद बना सकता है।

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